
आज एक अहसास आया मन में -सब कुछ न कुछ बेच रहे हैं |
जो असली है -वह दाम ले रहे है |
और बदले में सामान दे रहे हैं |
कोई कपडा, राशन, कास्मेटिक, और बहुत कुछ |
शायद इसकी कीमत तो लगाई जा सकती है |
पर इंसान के ज़ज़्बातो की कीमत कैसे लगाएं ?
माँ का रुदन, पत्नी की वेदना , बच्चे का रोना,
बाप की बापदा, और समय का चक्र -सब हो गया व्यर्थ |
कभी सोचती हूँ -क्या सही में सब विक्रेता हैं -अपने अहसासों को
बड़े प्यार से परोसते है -या रह गया है कुछ हृदय में बाकी -
जो आना है सामने और मेरे साथी |
स्वयं से पूछा, रह गया था कुछ सामान हृदय का उफान -
लेकिन पूछती हूँ क्या सही क्या गलत -
एक अहसास बस यही-और सही वक़्त |